घोर संकट के समय में आसमान छूती कीमतें आम लोगों के जले पर नमक छिड़क रही-सुबोध कांत सहाय

आर्थिक-संकट के दौरान आसमान छूती महंगाई

इस घोर संकट के समय में आसमान छूती कीमतें आम लोगों के जले पर नमक छिड़क रही हैं। असंवेदनशील, बेपरवाह मोदी सरकार ने गंभीर आर्थिक मंदी के दौरान भी देशवासियों को आसमान छूती कीमतों के बोझ के नीचे दबा दिया है। देशवासियों के हाथों में नकद धनराशि पहुंचाने की बजाय भाजपा सरकार उन्हें अपनी जरूरत के सामान के लिए ज्यादा मूल्य चुकाने को मजबूर कर रही है।

भारतीय और ज्यादा गरीब हो गए

यूपीए की पिछली सरकार ने बड़ी मेहनत से 27 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला था, लेकिन वर्तमान सरकार ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेरते हुए 23 करोड़ लोगों को वापस गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया। अकेले अप्रैल और मई महीने में 2 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं, 97 प्रतिशत लोगों को आज कम वेतन मिल रहा है। नौकरी खोने और कम वेतन मिलने के चलते देशवासियों को रिटायरमेंट के लिए बचाकर रखे गए अपने प्रॉविडेंट फंड में से लगभग 1.25 लाख करोड़ रु. निकालने पर मजबूर होना पड़ा।

आर्थिक कुप्रबंधन

जिस समय जीडीपी वृद्धि दर कम होती जा रही हो, ऐसे में सरकार द्वारा मूल्यों में वृद्धि एक जघन्य कृत्य है और इस आर्थिक बर्बादी का कारण केवल कोरोना नहीं है। हमारी अर्थव्यवस्था पर महामारी का साया पड़ने से पहले ही अनेक विपत्तियां आ चुकी थीं- हमारी वृद्धि दर वित्तवर्ष 2017 में 8.2 प्रतिशत से घटकर वित्तवर्ष 2020 में 4.1 प्रतिशत रह गई, यह सब कुछ भयावह नोटबंदी, त्रुटिपूर्ण तरीके से लागू की गई जीएसटी एवं मोदी सरकार की गलत नीतियों के कारण हुआ।

पेट्रोल एवं डीज़ल की दरों में अप्रत्याशित वृद्धि

पेट्रोल की कीमतें इतिहास में पहली बार सभी 4 मेट्रो और देश के अन्य 250 से अधिक शहरों में 100 रु. को पार कर गई है।

  • 1 अप्रैल, 2021 से 12 जुलाई, 2021 के बीच पेट्रोल एवं डीज़ल की कीमतें 66 बार बढ़ाई गईं।
  • मोदी सरकार ने अपने शासनकाल के पिछले 7 सालों में एक्साईज़ ड्यूटी से 25 लाख करोड़ रु. से ज्यादा का मुनाफा कमाया।
  • पिछले 7 सालों में पेट्रोल पर एक्साईज़ ड्यूटी में 247 प्रतिशत एवं डीज़ल पर 794 प्रतिशत वृद्धि की गई। पेट्रोल पर एक्साईज़ में प्रति लीटर वृद्धि पिछले 7 सालों में 23.42 रु. प्रति लीटर और डीज़ल पर 28.24 रु. प्रति लीटर की गई।
Timeline Excise Duty Per litre Increase in excise % Increase in Excise per Ltr.
April-2014 Rs 9.48 Rs 23.42 247%
July-2021 Rs 32.90
Timeline Excise Duty Per litre Increase in excise % Increase in Excise per Ltr
April-2014 Rs 3.56 Rs 28.24 794%
July-2021 Rs 31.80
  • 2014-15 में पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज़ ड्यूटी से अर्जित आय 1,72,000 करोड़ रु. थी, जिसे 2020-21 में बढ़ाकर 4,53,000 करोड़ रु. कर दिया है।
  • भारत सरकार पेट्रोल की बिक्री से 32 रु 90 पैसे प्रति लीटर वसूल करती है, जिसमें 20 रुपए 50 पैसे सेस के रूप में लिया जाता है। सेस से कमाया गया मुनाफा राज्य सरकारों के साथ साझा नहीं किया जाता। इसलिए भारत सरकार पेट्रोल बेचकर जो 62 प्रतिशत मुनाफा कमाती है, उसमें से एक पैसा भी राज्य सरकारों को नहीं मिलता। डीज़ल पर केंद्र सरकार 31 रुपए 80 पैसे प्रति लीटर कमाती है, जिसमें से 22 रु. प्रति लीटर सेस के रूप में लिया जाता है। यानि डीज़ल पर सेस के रूप में भारत सरकार द्वारा कमाए गए 69 प्रतिशत मुनाफे का एक पैसा भी राज्य सरकारों को नहीं मिलता।
  • राज्यों में कीमतें कम करने के लिए अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि राज्य सरकारों को अपना वैट कम करना चाहिए। 2020-21 में सभी राज्यों ने मिलकर 2.17 लाख करोड़ रु. वैट के रूप में एकत्रित किए, जो कि राज्य सरकार द्वारा एक्साईज़ के रूप में एकत्रित किए गए 4.53 लाख करोड़ रुपए के मुनाफे का केवल 48 प्रतिशत है। यह बात भी गौरतलब है कि भारत सरकार ने राज्यों की तुलना में बहुत ज्यादा अनुपात में एक्साईज़ शुल्क बढ़ाया है, जिसके कारण महंगाई में अत्यधिक वृद्धि हुई, इसलिए कीमतों को कम करने के लिए भारत सरकार द्वारा एक्साइज ड्यूटी में की गई वृद्धि को कम किया जाना जरुरी है।
  • पेट्रोल एवं डीज़ल पर अत्यधिक एक्साईज़ शुल्क के नितांत नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं क्योंकि इससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से मध्यम आय वर्ग एवं निम्न आय वर्ग के लोग प्रभावित होते हैं।
  • डीज़ल की ऊँची कीमतें किसान-विरोधी भी हैं क्योंकि वो प्रत्यक्ष रूप से डीज़ल के उपभोक्ता हैं और डीज़ल के मूल्यों में वृद्धि का उन पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • कच्चे तेल का प्रति बैरल औसत मूल्य 2011-12 से 2013-14 के दौरान 105 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से 112 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के बीच रहा, जब मई, 2014 में कांग्रेस सरकार का कार्यकाल समाप्त हुआ, तब कच्चे तेल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 108 डॉलर प्रति बैरल थी, लेकिन देश में पेट्रोल व डीज़ल का प्रति लीटर मूल्य क्रमशः 71.51 रु. और 57.28 रु. था।
Year Average Crude Rates

(USD per BBL)

2004-05 39.21
2005-06 55.72
2006-07 62.46
2007-08 79.25
2008-09 83.57
2009-10 69.76
2010-11 85.09
2011-12 111.89
2012-13 107.97
2013-14 105.52
2014-15 84.16
2015-16 46.17
2016-17 47.56
2017-18 56.43
2018-19 69.88
2019-20 60.47
2020-21 44.82
  • पिछली यूपीए सरकार डीज़ल की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए डीज़ल पर नुकसान उठाया करती थी, क्योंकि डीज़ल की बढ़ी कीमतों का महंगाई एवं परिवहन की लागत पर सीधा असर पड़ता है। पिछली यूपीए सरकार ने 2013-14 में 1.64 लाख करोड़ एवं 2012-13 में 1.42 लाख करोड़ का अंडर रिकवरी (पेट्रोल को बाजार मूल्य से कम में बेचने से होने वाले नुकसान) वहन की थी, किन्तु मोदी सरकार ने डीज़ल पर अंडर रिकवरी  को सितंबर, 2014 में मूल्यों में वृद्धि करके शून्य कर दिया।

मोदी सरकार के शासन काल में घरेलू तेल उत्पादन में गिरावट

  • घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन यूपीए-1 और यूपीए-2 के दौरान 23.4 प्रतिशत था, जो 2014 से 2020 के दौरान कम होकर 15.8 प्रतिशत रह गया। मोदी सरकार के कार्यकाल में यह प्रतिशत तेजी से गिरा है। भारत ने 2020 में पिछले 18 सालों में सबसे कम कच्चे तेल का उत्पादन किया। (नीचे दिया गया ग्राफ देखें)
  • मोदी सरकार अपनी अक्षमता के लिए पिछली सरकारों को दोषी ठहराती है, लेकिन सच्चाई यह है कि मोदी सरकार इस झूठ के पीछे अपना चेहरा छिपाने की कोशिश कर रही है। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) की घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन में 63 प्रतिशत हिस्सेदारी है, लेकिन इसके लिए पूंजीगत आवंटन जो 2020-21 में 32,501 करोड़ रु. था, वो 2021-22 के वार्षिक बजट में 8 प्रतिशत की गिरावट के साथ 29,800 करोड़ रु. हो गया है। सरकारी तेल एवं प्राकृतिक गैस कंपनियों में वर्तमान निवेश 1,04,870 करोड़ रु. है, जो पिछले बजट में निर्धारित किए गए 1,07,154 करोड़ रु. के मुकाबले कम है। इससे स्पष्ट होता है कि मौजूदा भाजपा सरकार घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रति गंभीर नहीं है।
  • तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम का विनाशः कम कैपिटल आउटले, कैश के रिजर्व में निरंतर गिरावट के कारण, ओएनजीसी ने तेल की खोज एवं विकास कार्यों में काफी कमी कर दी है। ओएनजीसी की वार्षिक वित्तीय लागत वित्तवर्ष 2014 में 0.36 करोड़ रु. से बढ़कर वित्तवर्ष 2020 में 2,824 करोड़ रु. हो गई, जिससे इसकी आर्थिक स्थिति को भारी झटका लगा। हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में नियंत्रणकारी हिस्सेदारी हासिल करने और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (जीएसपीसी) के केजी बेसिन गैस ब्लॉक में अधिकांश अंश खरीदने के कारण ओएनजीसी पर 24,881 करोड़ रु. के कर्ज का बोझ हो गया, जिसके चलते कंपनी को तेल कुओं में खोज कार्यों के खर्च में भारी कटौती करनी पड़ी। ओएनजीसी द्वारा तेल कुओं में खोज कार्य का खर्च वित्तवर्ष 2014 में 11,687 करोड़ रु. से गिरकर वित्तवर्ष 2020 में 4,330 करोड़ रु. रह गया।

कांग्रेस की पिछली सरकारों पर दोष मढ़ने की कोशिश कर रही मोदी सरकार

  • भाजपा के विभिन्न मंत्री व प्रवक्ता पेट्रोल और डीज़ल की बढ़ती कीमतों का दोष यूपीए शासन के दौरान जारी किए गए तेल बॉन्ड्स पर डालने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कीमतों में हो रही बढ़ोत्तरी के खिलाफ उठ रहे सवालों से बचने की यह एक गैर-तथ्यात्मक कोशिश है।
  • तेल बॉन्ड जारी करने का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाने पर उपभोक्ता को पेट्रोल व डीज़ल की ऊँची कीमतों के चलते पड़ने वाले अत्यधिक वित्तीय भार से सुरक्षा दिलाना था।
  • साल 2005 से 2010 के बीच, यूपीए सरकार ने केवल 1.4 लाख करोड़ रु. के तेल बॉन्ड जारी किए। सच्चाई यह है कि पिछले 6 साल 9 महीने में (1 अप्रैल, 2014 से 31 दिसंबर, 2020 के बीच) केंद्रीय खजाने में तेल बॉन्ड्स के कारण उत्पन्न भार पेट्रोलियम सेक्टर के कुल योगदान का 2.8 प्रतिशत है। दूसरे शब्दों में, पिछले 6 साल 9 महीनों में, भारत सरकार ने इन बॉन्ड्स की मूल राशि एवं ब्याज के रूप में 71,198 करोड़ रु. अदा किए हैं, जबकि देश के नागरिकों से इसके लिए 25 लाख करोड़ रु. वसूले गए हैं, यानि एकत्रित की गई राशि का केवल 2.8 प्रतिशत दिया गया (नीचे दिया गया चार्ट देखें)।

Source: PPAC

*Tax collections Data for only 9 months is available for 2020-21; Interest amount has also been considered for 9 months for consistency

यह तर्क कि राज्यों को फ्यूल टैक्स कम करना चाहिए, पूरी तरह से गलत है। केंद्र सरकार पर लगभग सभी राज्यों को देय जीएसटी की भारी देनदारी है (पंजाब – 7,393 करोड़ रु., राजस्थान – 7,142 करोड़ रु., छत्तीसगढ़ – 3,069 करोड़ रु., तमिलनाडु – 6,415 करोड़ रु.)

साथ ही निम्नलिखित गणना देखिए कि केंद्र सरकार टैक्स में भारी बढ़ोत्तरी कर कितना पैसा बना रही है, जबकि राज्यों का हिस्सा काफी कम है। 

तुलना  एक्साईज़ ड्यूटी में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों का हिस्सा (प्रति लीटर पेट्रोल)

2014 – केंद्र सरकार: 6.45 रु.                  राज्य सरकार: 3.03 रु.

2021 – केंद्र सरकार: 32.33 रु.               राज्य सरकार: 0.57 रु.

एक्साईज़ ड्यूटी में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों का हिस्सा (प्रति लीटर डीज़ल)

2014 – केंद्र सरकार: 2.43 रु.                 राज्य सरकार: 1.14 रु.

2021 – केंद्र सरकार: 31.06 रु.               राज्य सरकार: 0.74 रु.

 

खाने के तेल एवं अन्य घरेलू सामान में महंगाई

कोटक इंस्टीट्यूशनल सिक्योरिटीज़ रिसर्च के अनुसार, सामान्य घरेलू सामान के मूल्य मार्च, 2021 की तुलना में जून, 2021 में 42 प्रतिशत बढ़ गए(केवल 3 महीनों में)।

Product % Increase in Prices (March – June 2021)
Edible Oil 12-42%
Bath Soap and Shampoo 8-20%
Washing Powder 3-10%
Tea Leaves 4-8%
Baby Food 3-7%
Noodles 9-20%

  • होलसेल प्राइस इन्फ्लेशन (थोक मूल्य मुद्रास्फीति) मई, 2021 में बढ़कर 12.94 प्रतिशत हो गई, जो साल 2012 के बाद अब तक की सबसे ज्यादा वृद्धि दर है और रिटेल महंगाई बढ़कर 6.3 प्रतिशत हो गई।
  • सीपीआई और डब्लूपीआई आंकड़ों को बढ़ाने वाले तीन तत्व हैं: फ्यूल इन्फ्लेशन, फूड इन्फ्लेशन और मुख्य निर्मित उत्पाद।
  • खाद्य तेलों में इन्फ्लेशन मई, 2021 में बढ़कर 30.8 प्रतिशत पर पहुंच गई।

वस्तुओं के मूल्य की तुलना (साल 2014 बनाम साल 2021)

इनके मूल्य;

फुल क्रीम मिल्क – 44 रु. (2014)/ 57 रु. (2021)

टोन्ड – 34 रु. (2014)/ 47 रु. (2021)

डबल टोन्ड – 32 रु. (2014)/ 41 रु. (2021)

देसी घी – 380 रु. (2014)/ 600 रु. से 800 रु. (2021)

दाल 

तुअर – 64 रु. (2014)/ 130 रु. – 150 रु. (2021)

उड़द दाल – 59 रु. (2014)/ 145 रु. (2021)

मूंग दाल – 65 रु. (2014)/ 100 रु. से 110 रु. (2021)

सरसों तेल  60 रु. से 70 रु. (2014)/ 175 रु. से 200 रु. (2021)

चाय  116 रु. (2014)/ 145 रु. (2021)

खाद्य तेलों का मॉडल रिटेल मूल्य (सबसे आम) पिछले एक साल में 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत बढ़ गया। पीएमसी (प्राइस मॉनिटरिंग सेल) डेटा प्रदर्शित करता है कि मॉडल वनस्पति मूल्य (पैक्ड) पिछले एक साल में 80 रु. प्रति लीटर से बढ़कर 120 रु. प्रति लीटर हो गया और सूरजमुखी तेल के एक लीटर का पैक मार्च, 2021 में 150 रु. में बिका, जो एक साल पहले 110 रु. का था।

एलपीजी (रसोई गैस )-

अप्रैल, 2014 में एलपीजी का मूल्य 414 रु. प्रति सिलेंडर था, जो इस समय बढ़कर लगभग 850 से 915 रु. प्रति सिलेंडर हो गया है। पिछले 7 साल में एलपीजी का मूल्य भारत सरकार ने दोगुना बढ़ा दिया। पिछले 7 महीनों में एलपीजी के दाम 6 बार में 240 रु. बढ़ाए गए। एलपीजी सिलेंडर के दाम नवंबर, 2020 में 594 रु. थे, जो बढ़ाकर लगभग 850 रु. से 915 रु. कर दिए गए। देश में लगभग 29 करोड़ लोग एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं। आज कितने उज्जवला लाभार्थी एलपीजी सिलेंडर 915 रु. प्रति सिलेंडर में खरीद सकते हैं? सच्चाई यह है कि साल 2020 में हमारे देश में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिए गए एवं 97 फीसदी लोग और ज्यादा गरीब हो गए।

एलपीजी के दाम सउदी आरामको के एलपीजी दामों के आधार पर निर्धारित होते हैं, जो इस समय 523 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन है, यानि यदि एक डॉलर 73.94 रु. का मानें तो इसका मूल्य 38,670.62 रु. प्रति मीट्रिक टन होगा। इसका मतलब है कि एलपीजी का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य 38.67 रु. प्रति किलोग्राम है। घरेलू गैस के सिलेंडर में 14.2 किलोग्राम गैस होती है, यदि इसके बेस मूल्य की गणना की जाए, तो एक सिलेंडर 549.11 रु. का पड़ेगा। इस मूल्य में मोदी सरकार 5 प्रतिशत जीएसटी, बोटलिंग का शुल्क, एजेंसी कमीशन, परिवहन शुल्क लगाती है और फिर कंपनियों का मुनाफा जोड़कर देश की गरीब जनता से प्रति सिलेंडर से 850 से 915 रु. की बड़ी कीमत वसूली जाती है।

जब यूपीए की सरकार ने ऑफिस छोड़ा था, तब यूपीए सरकार फ्यूल सब्सिडी के लिए हर साल 1,42,000 करोड़ रु. दिया करती थी। इसलिए यह आवश्यक है कि आज की सरकार इस बात को समझे कि पेट्रोल-एलपीजी के दाम हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव डालने वाले हैं। आज हम 6.3 प्रतिशत का इन्फ्लेशन स्तर देख रहे हैं, जो सीधा देश की आम जनता पर असर डालता है। प्रति सिलेंडर मूल्य में 240 रु. की बढ़ोत्तरी विनाशकारी है।

कृषि महंगाई

भारत में 140 करोड़ नागरिक महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और कोरोना महामारी की मोदी निर्मित आपदाओं से जूझ रहे हैं। तेल की कीमतों में प्रतिदिन हो रही वृद्धि ने समस्याओं को और ज्यादा बढ़ा दिया है और हर घर के लिए जीवनयापन करना मुश्किल होता जा रहा है। इस प्रकार मोदी सरकार द्वारा की गई डीज़ल-खाद-बीज, उर्वरक-बिजली-कृषि के उपकरणों के मूल्यों में वृद्धि ने किसानों की खेती की लागत में लगभग 20,000 रु. प्रति हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी कर दी है।

देश के पिछले 73 सालों के इतिहास में पहली बार खाद पर 5 प्रतिशत, कीटनाशक पर 18 प्रतिशत जीएसटी, ट्रैक्टर्स एवं खेती के उपकरणों पर 12 प्रतिशत टैक्स लगा दिया गया।

क्या पेट्रोल  डीज़ल के मूल्य अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के अनुसार परिवर्तनशील हैं?

नहीं, यह सब चुनाव की समय सारणी पर निर्भर है। निम्नलिखित उदाहरण देखें, जब कच्चे तेल के मूल्यों में वृद्धि के बाद भी चुनावों के दौरान पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में कमी की गई।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री सुबोध कांत सहाय जी का बयान

महंगाई से मुंह मत मोड़ो और कम नहीं कर सकते तो कुर्सी छोड़ो

महंगी गैस, महंगा तेल बंद करो लूट का यह खेल

आज आम जनता से हम आज़ाद भारत की सबसे संवेदनहीन और सितमगर सरकार के सरोकार पर बात करने आए हैं। कहते हैं कि जब सत्ता में लूट के किरदार बैठ जाएं, तो ‘‘जनता की आमदनी कम और दिन महंगे’’ हो जाते हैं। आज देश की मोदी सरकार सिर्फ ‘‘सत्ता की भूख’’ मिटा रही है और ‘‘कमरतोड़ महंगाई’’ से 140 करोड़ देशवासियों की आय लूटती जा रही है।

आज देश में …………………………………………..

ऽ           भराने का तेल (पेट्रोल) ₹100 पार,

ऽ           खाने का तेल ₹200 पार,

ऽ           खाना पकाने का तेल (रसोई गैस) ₹850 पार

ऐसी रही बेशर्म और महंगी मोदी सरकार!

केंद्रीय भाजपा सरकार ने ‘प्रजातंत्र की परिभाषा’ ही बदल दी है। जनता को महंगाई की ‘आग में झोंककर’ अंतिम पंक्ति में खड़े आमजन की आमदनी को मोदी सरकार नोच रही है और बस अपने धन्ना सेठ दोस्तों की सोच रही है। सच यह है कि ‘महंगाई डायन’ अब भाजपाइयों को ‘‘अप्सरा’’ सी नज़र आने लगी है।

पेट्रोल-डीज़ल की लूट के तथ्य देखें :-

  1. आज दिल्ली सहित200 से अधिक शहरों में पेट्रोल की कीमत ₹100 प्रति लीटर को पार कर गई है। डीज़ल की कीमत ₹90 प्रति लीटर को छू रही है। 1 जनवरी, 2021 से 7 जुलाई, 2021 तक ही मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल की कीमत 69 बार बढ़ाई।
  2. अप्रैल, 2014से जून, 2021 तक मोदी सरकार ने पेट्रोल-डीज़ल की लूट से ₹25,000,000,000,000 करोड़ रु. (25 लाख करोड़ – 24,94,122 करोड़) कमाए।
  3. मोदी सरकार ने पेट्रोल पर एक्साईज़ ड्यूटी7 साल में 258 प्रतिशत बढ़ाई और डीज़ल पर 820 प्रतिशत बढ़ाई। मई, 2014 में पेट्रोल पर केंद्रीय एक्साईज़ ड्यूटी ₹9.20 प्रति लीटर थी, जो आज ₹23.78 प्रति लीटर है। मई, 2014 में डीज़ल पर एक्साईज़ ड्यूटी ₹3.46 प्रति लीटर थी,  जो आज ₹28.37 प्रति लीटर है। साल 2014-15 में केंद्र सरकार एक्साईज़ से सालाना ₹99,068 करोड़ इकट्ठा करती थी। साल 2020-21 में पेट्रोल-डीज़ल से एकत्रित होने वाली एक्साईज़ ड्यूटी राशि बढ़कर ₹4,51,000 करोड़ हो गई।
  4. अकेले कोरोना काल में ही भाजपा सरकार ने पेट्रोल पर₹13 प्रति लीटर और डीज़ल पर ₹16 प्रति लीटर ड्यूटी बढ़ाई। पिछले दो महीने में ही मोदी सरकार ने पेट्रोल की कीमत ₹9.81 प्रति लीटर व डीज़ल की कीमत ₹8.80 प्रति लीटर बढ़ा दी है।
  5. कांग्रेस-यूपीए सरकार के मुकाबले मोदी सरकार के सात साल के कार्यकाल में कच्चे तेल के दाम साल दर साल घटते गए और140 करोड़ देशवासियों की जेब काटकर पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ते गए। निम्नलिखित चार्ट देखें :-

पिछले 11 साल में भारत द्वारा खरीदे गए कच्चे तेल के दाम

वर्ष क्रूड ऑयल का औसत दाम (डॉलर प्रति बैरल)
2010-11 85.09
2011-12 111.89
2012-13 107.97
2013-14 105.52
2014-15 84.16
2015-16 46.17
2016-17 47.56
2017-18 56.43
2018-19 69.88
2019-20 60.47
2020-21 44.82

मोदी सरकार के जहचाल, चेहरे और चरित्र’ को एक ही वाक्य में परिभाषित किया जा सकता है :-

‘‘बेरोज़गारी-महंगाई से बैर नहीं,

पर प्रगति-तरक्की की खैर नहीं’’

देश की जनता की ओर से मोदी सरकार को हम यही कहेंगे :-

कीमतें कम करो या कुर्सी खाली करो

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