पाक कोर्ट के भारत के खिलाफ नफरत भरे बोल

इस्लामाबाद
अल्पसंख्यकों के अधिकार व अभिव्यक्ति की आजादी के मसले पर पहले पाकिस्तान की सरकारें ही भारत विरोधी बातें करती थीं और अब वहां के कोर्ट भी नफरत भरे बयान दे रहे हैं। के चीफ जस्टिस अतहर मिनल्लाह ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ‘यहां सभी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाएगी, क्योंकि यह भारत नहीं है, बल्कि पाकिस्तान है।’ जज का बयान तब आया है जब पाकिस्तान के अंदर खुद आए दिन अल्पसंख्यकों के अत्याचार की खबरें आती रहती हैं। पाक कोर्ट की इस गैरजरूरी टिप्पणी पर भारत सरकार की तरफ से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

दरअसल, जज पश्तून तहफूज आंदोलन (पीटीएम) और अवामी वर्कर्स पार्टी (एडब्ल्यूपी) के 23 कार्यकर्ताओं की जमानत याचिकाओं पर फैसला सुना रहे थे। इन्हें पीटीएम प्रमुख मंजूर पश्तीन की गिरफ्तारी के विरोध में इस्लामाबाद पुलिस ने पिछले महीने इन्हें गिरफ्तार किया था। जज ने कहा, ‘हम उम्मीद नहीं करते हैं कि एक लोकतांत्रिक सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘एक निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगा सकती है। हमें आलोचना का डर नहीं होना चाहिए।’ जस्टिस मिनल्लाह ने कहा, ‘सभी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जाएगी। यह पाकिस्तान है, भारत नहीं।’

सरकार के बाद वहां की कोर्ट भी मानवाधिकार की रक्षा के बड़े दावे कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि विभाजन के वक्त पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं की संख्या 22 फीसदी थी जो घटकर 4 फीसदी के आसपास आ गई है। इसकी वजह उनका जबरन धर्मांतरण या उनकी हत्या रही है। यही त्रासदी वहां रह रहे सिखों की भी रही। आजादी के बाद से हिंदू, सिख समुदाय के लोगों का अपनी जान बचाकर भारत आने का सिलसिला जारी है।

पाकिस्तान में बलूच नागरिकों के साथ अत्याचार की कहानी भी नई नहीं है। देश में प्राकृतिक संसाधनों का बड़ा केंद्र बलूचिस्तान है लेकिन वहां के स्थानीय नागरिकों को उसका फायदा नहीं मिल रहा। वे अपने अधिकार की लड़ाई अलग लड़ रहे हैं और बलूचिस्तान को अलग करने की मांग कर रहे हैं। आर्टिकल 370 से जुड़ा फैसला हो या नागरिकता संशोधन कानून इमरान खान से लेकर पाक के मंत्रियों ने भारत के खिलाफ जहरीली बातें करने में सारी हदें पार कर दीं। आर्टिकल 370 हटाने के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बार-बार उठाया और भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए,वहीं खुद मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालाई इस्लाम को महिला अधिकार की आवाज उठाने पर देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। सुरक्षाकर्मियों को उसकी खोज में लगा दिया गया, वह किसी तरह अपनी जान बचाते अमेरिकी पहुंची।

Source: International

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