दिल्ली आग: 43 परिवारों ने बताई दर्द की दास्तां

नई दिल्लीरोजी रोटी की तलाश में दिल्ली की अनाज मंडी पहुंचे 43 लोगों का परिवार तबाह हो गया। रह रह कर एलएनजेपी अस्पताल के मॉर्चरी के बाहर चीखें गूंज रही थीं। आसपास से गुजर रहे लोग भी सिहर जा रहे थे। कभी किसी को बेटा रो रहा था, तो कभी बुढ़ापे की लाठी छिन जाने पर बाप दर्द से तड़प रहा था। इस दर्द के साथ अब बाकी जिंदगी बितानेवाले परिवारों से नवभारत टाइम्स संवाददात पूनम गौड़ और राहुल आनंद ने बात की।

पिता-चाचा की मौत, मासूम का कौन रखेगा ख्याल?
आठ साल का अली अहमद अपने पिता इमरान की लाश लेने के लिए बैठा था, वह अपने पिता के पोस्टमॉर्टम का इंतजार कर रहा था। पिता और चाचा की मौत से बच्चा सहमा हुआ था। इस उम्र में भले ही वह मौत के दर्द को समझ नहीं पा रहा था, लेकिन उसके साथ उसकी नानी सब समझ रही थी कि आने वाले दिन उसके लिए कितना भयानक होने वाले हैं। वह कहती हैं कि बाप का साया उठ गया, अब तो अल्लाह ही जानें क्या होगा इसका?

यूपी में मुरादबाद के गांव कुरी के रहने वाले अली के पिता इमरान अहमद और इकराम की मौत हो चुकी थी। इस गांव के एक अन्य युवक 20 साल के समीर की भी मौत हो गई है। अपनी नानी के साथ बैठे अली ने बताया कि परसों ही पापा से बात हुई थी, वो मुझे बुहत प्यार करते थे। अपने पिता का एकलौता बेटा अली कहता है कि वह पढ़ना चाहता है, अभी चौथी क्लास में है। मां बहुत रो रही हैं, वह बार-बार बेहोश हो जा रही हैं। इतने में उसकी नानी कहती हैं कि बच्चा के सिर पर जब बाप का साया नहीं रहता है तो गुजारा मुश्किल हो जाता है। ये तीनों लोग बैग बनाने के कारखाने में काम करते थे। इमरान और इकराम के पिता जमील अहमद भी वहां मौजूद थे। इन्हीं की शिनाख्त के बाद सोमवार दोपहर को दोनों भाईयों का पोस्टमॉर्टम हुआ और शव परिजनों को सौंप दिए। परिजन एंबुलेंस में शव लेकर अपने गांव के लिए रवाना हुए।

मुशर्रफ के परिवार का ख्याल रखेंगे दोस्त मोनू अग्रवाल
यह मत सोचना मैं चला गया, हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा… मौत से पहले ये बात मुशर्रफ ने अपने बचपन के दोस्त मोनू अग्रवाल को फोन पर कही। एनबीटी से बातचीत में मोनू ने कहा कि उन दोनों की दोस्ती खून की रिश्तेदारी और मजहब से कहीं ऊंची थी। बचपन के दोस्त थे, कभी भी हिंदू-मुसलमान का पता नहीं चला। पिछले शुक्रवार को वह गांव आया था, हमने खूब समय बिताया था। वह मेरे ऊपर बहुत विश्वास करता था।

मुशर्रफ जब आग में बुरी तरह से घिर गया था, तो उसने अपने परिवार में किसी को फोन न करके मोनू को फोन किया और कहा कि मेरे परिवार को लेके पहुंच जाना। भरोसे को कायम रखते हुए मोनू डेड बॉडी लेने दिल्ली पहुंचे थे। मोनू ने कहा कि कभी ऐसा नहीं लगा कि हम दोनों अलग मजहब के हैं। अपनी बातें एक दूसरे के साथ साझा करते रहे। जो बात मैं अपने परिवार को नहीं बता सकता था, वह मैंने मुशर्रफ के साथ साझा की। मौत से पहले उसने जो दर्द बयान किया, वह याद कर मैं सहम जा रहा हूं। उसकी बातें ऐसी थी कि मानो मेरे सामने मौत खड़ी हो। वह बात कर रहा था तो पीछे से चीखें सुनाई पड़ रही थीं। मैं इतना बेबस और लाचार था कि बस सुनता रहा। मोनू ने कहा कि मुशर्रफ अपने पीछे चार बच्चे और मां को छोड़ गया है। अब उसकी जिम्मेदारी तो मेरे कंधे पर है। इस घटना में बिहार के साथ यूपी के भी बहुत सारे युवा शिकार हुए हैं, कई की मौत हो गई है। हमारी यूपी सरकार से मांग है कि वो भी दिल्ली और बिहार सरकार की तरह मुआवजा दे।

दिन-रात मजदूरी कर परिवार को पैसे भेजनेवाला बेटा नहीं रहा
जिस मां की आंखों में मोहम्मद समीर आंसू का एक कतरा तक नहीं देख सकते थे, उनकी आंखों से लगातार आंसू निकल रहे हैं। 22 साल के मोहम्मद समीर अनाज मंडी की इमारत में लगी आग में दम तोड़ चुके हैं। मौत की खबर से बदहवास हुई उनकी अम्मी खदीजा अपने रिश्तेदारों के साथ लेडी हार्डिंग अस्पताल के शव गृह पहुंचीं। समीर के पिता का काफी पहले इंतकाल हो चुका है।

खतीजा ने बताया कि समीर तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। बाकी दोनों भाई की शादी हो गई है और उनकी कमाई का ज्यादा हिस्सा अपने परिवार पर खर्च हो जाता है। समीर ही थे जो खदीजा की उम्मीद और सहारा थे। घर के हालात ठीक न होने की वजह से ही समीर दिल्ली आए थे, ताकि कमाई थोड़ी बढ़ जाए। तीनों बहनों के भी समीर लाडले थे। समीर पंद्रह दिन पहले ही छुट्टी से वापस यहां आए थे। मां ने उनसे कहा था कि अपना ध्यान रखना। खदीजा कहती हैं, अगर मुझे जरा-सा अहसास होता कि यह उनकी समीर से यह आखिरी मुलाकात साबित होगी, तो वह समीर को आने ही नहीं देतीं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में समीर दिन-रात मजदूरी करते थे और अधिक से अधिक पैसा बचाकर उन्हें देते थे। समीर की याद में खतीजा की आंखों से आंसू सूख ही नहीं रहे।

‘भाई को ढूंढ़ता रहा और फिर उसका शव मिला’
मुझे लगा कि वह अब नहीं रहा, उसके बाद मैं बेहोश हो गया।’ ये कहना है हैदर का। हैदर ने कहा कि जब मेरी आंख खुली तो मेरे सामने फायर विभाग के एक अधिकारी राजेश शुक्ला सामने थे। हैदर ने कहा कि उन्होंने ही मुझे बाहर निकाला था। हैदर ने बताया कि उसके बाद मैं अपने भाई को ढूंढने लगा तो अधिकारी ने बताया कि अस्पताल जाकर पता करो। हैदर ने एनबीटी से बात करते हुए कहा कि मैं बुराड़ी में रहता हूं और मेरा भाई यहां पर ही रहता था। हैदर ने बताया कि सुबह चार बज रहे थे, अचानक फोन की घंटी बजी। बबलू ने बताया कि आग लग गई है और पूरी बिल्डिंग में धुआं ही धुआं है और सांस भी नहीं ले पा रहा है। हैदर ने कहा कि वह तुरंत घर से भागा, ताकि अपने भाई को मौत के मुंह से बाहर निकाल सकूं, लेकिन मैं उसे बचा नहीं सका।

हैदर ने कहा कि वह फिर अपने भाई को ढूंढने के लिए एलएनजेपी अस्पताल पहुंचा, लेकिन काफी देर तक ढूंढने के बाद भी उसके भाई का कुछ पता नहीं चला तो किसी ने बताया कि कुछ लोगों को लेडी हार्डिंग अस्पताल में भेजा गया है। हैदर ने कहा कि जब मैं लेडी हार्डिंग पहुंचा तो वहां पर बबलू का शव मिला।

Source: National

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