- लद्दाख के जबरो, असम के बीहू, सिक्किम के तमांग सेला, त्रिपुरा के होजागिरी, अरूणाचल प्रदेश के जूजू-जाजा नृत्य की हुई आकर्षक प्रस्तुतियां
- होजागिरी नृत्य में युवतियों ने हाथ में थाल और सिर पर जगमगाते दीए लेकर किया संतुलन का अद्भुत प्रदर्शन
रायपुर, 29 अक्टूबर 2021/ राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव 2021 के दूसरे दिन राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में पारंपरिक वेशभूषा, वाद्य यंत्रों के साथ विभिन्न देशों सहित केन्द्र शासित प्रदेश और राज्यों से आए लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों में उमंग और जोश भर दिया। पारंपरिक त्यौहार एवं अनुष्ठान, फसल कटाई-कृषि एवं अन्य पारंपरिक विधाओं पर आधारित नृत्य प्रतियोगिता के अंतर्गत लद्दाख के जबरो, असम के बीहू और बार दोई शीतला, महाराष्ट्र के गारली सुसून, सिक्कीम के तमांग सेला, त्रिपुरा के होजागिरी, अरूणाचल प्रदेश के जूजू-जाजा, मिजोरम के चेराव लाम और मध्यप्रदेश के भगोरिया लोक नृत्यों की अद्भुत नृत्य शैली का प्रदर्शन कलाकारों ने किया।
केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के कलाकारों ने तिब्बती नववर्ष पर किए जाने वाले जबरो नृत्य की प्रस्तुति दी। नृत्य में जोश एवं भाव-भंगिमा का विशेष आकर्षण लिए इस नृत्य में पदताल की अधिकता होती है। लाल-पीले रंग-बिरंगे पोशाक से सजे-धजे कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से बताया कि ऊंचे पहाड़ों पर कठिन परिस्थितियों में जीवन-यापन करने वाले लोग कैसे गीत-संगीत से कैसे खुशनुमा माहौल बना लेते हैं। इसी तरह असम के कलाकारों ने बोडो जनजाति द्वारा किया जाना वाला बार दोई शीतला और बीहू नृत्य का प्रदर्शन किया। असमिया गीतों की मधुर धुन के बीच कलाकारों ने चटक रंगों के परिधानों में भाव-भंगिमा की अद्भूत प्रस्तुति दी। बार दोई शीतला नाम वायु-जल और युवती को दर्शता है। इसमें वैशाख ऋतु में तेज आंधी को प्रतिकात्मक रूप से पारंपरिक नृत्य के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। दुर्गा पूजा से लेकर हर उत्सव में यह नृत्य किया जाता है।